मैं आज आप सभी को महान राजनितिज्ञ्य आचार्य चाणक्य के जीवन और विचारो से अवगत करवाने जा रहां हूँ इसलिए आप सभी उनकी विचारधारा को जीवन में अवश्य लायें
आचार्य चाणक्य के अनमोल विचार और कथन :-
1: ऋण, शत्रु और रोग को समाप्त कर देना चाहिए।
2: वन की अग्नि चन्दन की
लकड़ी को भी जला देती है अर्थात दुष्ट व्यक्ति किसी का भी अहित कर सकते है।
3: शत्रु की दुर्बलता जानने
तक उसे अपना मित्र बनाए रखें।
4: सिंह भूखा होने पर भी
तिनका नहीं खाता।
5: एक ही देश के दो शत्रु
परस्पर मित्र होते है।
6: आपातकाल में स्नेह करने
वाला ही मित्र होता है।
7: मित्रों के संग्रह से बल
प्राप्त होता है।
8: जो धैर्यवान नहीं है,
उसका न वर्तमान है न भविष्य।
9: संकट में बुद्धि ही काम
आती है।
10: लोहे को लोहे से ही
काटना चाहिए।
11: यदि
माता दुष्ट है तो उसे भी त्याग देना चाहिए।
12: यदि स्वयं के हाथ में
विष फ़ैल रहा है तो उसे काट देना चाहिए।
13: सांप को दूध पिलाने से
विष ही बढ़ता है, न की अमृत।
14: एक बिगड़ैल गाय सौ
कुत्तों से ज्यादा श्रेष्ठ है। अर्थात एक विपरीत
स्वाभाव का परम हितैषी व्यक्ति, उन सौ लोगों से श्रेष्ठ है
जो आपकी चापलूसी करते है।
15: कल के मोर से आज का
कबूतर भला। अर्थात संतोष सब बड़ा धन है।
16: आग सिर में स्थापित करने
पर भी जलाती है। अर्थात दुष्ट व्यक्ति का कितना भी सम्मान कर लें, वह सदा दुःख ही देता है।
17: अन्न के सिवाय कोई दूसरा
धन नहीं है।
18: भूख के समान कोई दूसरा
शत्रु नहीं है।
19: विद्या ही निर्धन का धन है।
20: विद्या को चोर भी नहीं
चुरा सकता।
21: शत्रु के गुण को भी
ग्रहण करना चाहिए।
22: अपने स्थान पर बने रहने
से ही मनुष्य पूजा जाता है।
23: सभी प्रकार के भय से
बदनामी का भय सबसे बड़ा होता है।
24: किसी लक्ष्य की सिद्धि
में कभी शत्रु का साथ न करें।
25: आलसी का न वर्तमान होता
है, न भविष्य।
26: सोने के साथ मिलकर चांदी
भी सोने जैसी दिखाई पड़ती है अर्थात सत्संग का प्रभाव मनुष्य पर अवश्य पड़ता है।
27: ढेकुली नीचे सिर झुकाकर
ही कुँए से जल निकालती है। अर्थात कपटी या पापी
व्यक्ति सदैव मधुर वचन बोलकर अपना काम निकालते है।
28: सत्य भी यदि अनुचित है
तो उसे नहीं कहना चाहिए।
29: समय का ध्यान नहीं रखने
वाला व्यक्ति अपने जीवन में निर्विघ्न नहीं रहता।
30: जो जिस कार्ये में कुशल
हो उसे उसी कार्ये में लगना चाहिए।
31: दोषहीन कार्यों का होना
दुर्लभ होता है।
32: किसी भी कार्य में पल भर
का भी विलम्ब न करें।
33: चंचल चित वाले के कार्य
कभी समाप्त नहीं होते।
34: पहले निश्चय करिएँ,
फिर कार्य आरम्भ करें।
35: भाग्य पुरुषार्थी के
पीछे चलता है।
36: अर्थ, धर्म और कर्म का आधार है।
37: शत्रु दण्डनीति के ही
योग्य है।
38: कठोर वाणी अग्निदाह से
भी अधिक तीव्र दुःख पहुंचाती है।
39: व्यसनी व्यक्ति कभी सफल
नहीं हो सकता।
40: शक्तिशाली शत्रु को
कमजोर समझकर ही उस पर आक्रमण करे।
41: अपने से अधिक शक्तिशाली
और समान बल वाले से शत्रुता न करे।
42: मंत्रणा को गुप्त
रखने से ही कार्य सिद्ध होता है।
43: योग्य सहायकों के बिना
निर्णय करना बड़ा कठिन होता है।
44: एक अकेला पहिया नहीं चला
करता।
45: अविनीत स्वामी के होने
से तो स्वामी का न होना अच्छा है।
46: जिसकी आत्मा संयमित होती
है, वही आत्मविजयी होता है।
47: स्वभाव का अतिक्रमण
अत्यंत कठिन है।
48: धूर्त व्यक्ति अपने
स्वार्थ के लिए दूसरों की सेवा करते हैं।
49: कल की हज़ार कौड़ियों से
आज की एक कौड़ी भली। अर्थात संतोष सबसे बड़ा धन है।
50: दुष्ट स्त्री बुद्धिमान
व्यक्ति के शरीर को भी निर्बल बना देती है।
51: आग में आग नहीं डालनी चाहिए। अर्थात क्रोधी
व्यक्ति को अधिक क्रोध नहीं दिलाना चाहिए।
52: मनुष्य की वाणी ही विष
और अमृत की खान है।
53: दुष्ट की मित्रता से
शत्रु की मित्रता अच्छी होती है।
54: दूध के लिए हथिनी पालने
की जरुरत नहीं होती। अर्थात आवश्कयता के अनुसार साधन जुटाने चाहिए।
55: कठिन समय के लिए धन की
रक्षा करनी चाहिए।
56: कल का कार्य आज ही कर
ले।
57: सुख का आधार धर्म है।
58: धर्म का आधार अर्थ
अर्थात धन है।
59: अर्थ का आधार राज्य है।
60: राज्य का आधार अपनी
इन्द्रियों पर विजय पाना है।
61: प्रकृति (सहज) रूप से
प्रजा के संपन्न होने से नेताविहीन राज्य भी संचालित होता रहता है।
62: वृद्धजन की सेवा ही विनय का आधार है।
63: वृद्ध सेवा अर्थात
ज्ञानियों की सेवा से ही ज्ञान प्राप्त होता है।
64: ज्ञान से राजा अपनी
आत्मा का परिष्कार करता है, सम्पादन करता है।
65: आत्मविजयी सभी प्रकार की
संपत्ति एकत्र करने में समर्थ होता है।
66: जहां लक्ष्मी (धन) का
निवास होता है, वहां सहज ही सुख-सम्पदा आ जुड़ती है।
67: इन्द्रियों पर विजय का
आधार विनर्मता है।
68: प्रकर्ति का कोप सभी
कोपों से बड़ा होता है।
69: शासक को स्वयं योगय बनकर
योगय प्रशासकों की सहायता से शासन करना चाहिए।
70: योग्य सहायकों के बिना
निर्णय करना बड़ा कठिन होता है।
71: एक अकेला पहिया नहीं चला
करता।
72: सुख और दुःख में सामान
रूप से सहायक होना चाहिए।
73: स्वाभिमानी व्यक्ति
प्रतिकूल विचारों कोसम्मुख रखकर दुबारा उन पर विचार करे।
74: अविनीत व्यक्ति को स्नेही
होने पर भी मंत्रणा में नहीं रखना चाहिए।
75: शासक को स्वयं योग्य
बनकर योग्य प्रशासकों की सहायता से शासन करना चाहिए।
76: सुख और दुःख में समान
रूप से सहायक होना चाहिए।
77: स्वाभिमानी व्यक्ति
प्रतिकूल विचारों को सम्मुख रखकर दोबारा उन पर विचार करे।
78: अविनीत व्यक्ति को
स्नेही होने पर भी अपनी मंत्रणा में नहीं रखना चाहिए।
79: ज्ञानी और छल-कपट से
रहित शुद्ध मन वाले व्यक्ति को ही मंत्री बनाए।
80: समस्त कार्य पूर्व
मंत्रणा से करने चाहिए।
81: विचार अथवा मंत्रणा को
गुप्त न रखने पर कार्य नष्ट हो जाता है।
82: लापरवाही अथवा आलस्य से
भेद खुल जाता है।
83: सभी मार्गों से मंत्रणा
की रक्षा करनी चाहिए।
84: मन्त्रणा की सम्पति से
ही राज्य का विकास होता है।
85: मंत्रणा की गोपनीयता को
सर्वोत्तम माना गया है।
86: भविष्य के अन्धकार में
छिपे कार्य के लिए श्रेष्ठ मंत्रणा दीपक के समान प्रकाश देने वाली है।
87: मंत्रणा के समय
कर्त्तव्य पालन में कभी ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए।
88: मंत्रणा रूप आँखों से
शत्रु के छिद्रों अर्थात उसकी कमजोरियों को देखा-परखा जाता है।
89: राजा, गुप्तचर और मंत्री तीनो का एक मत होना किसी भी मंत्रणा की सफलता है।
90: कार्य-अकार्य के
तत्वदर्शी ही मंत्री होने चाहिए।
91: छः कानो में पड़ने से
(तीसरे व्यक्ति को पता पड़ने से) मंत्रणा का भेद खुल जाता है।
92: अप्राप्त लाभ आदि
राज्यतंत्र के चार आधार है।
93: आलसी राजा अप्राप्त लाभ
को प्राप्त नहीं करता।
94: आलसी राजा प्राप्त
वास्तु की रक्षा करने में असमर्थ होता है।
95: आलसी राजा अपने विवेक की
रक्षा नहीं कर सकता।
96: आलसी राजा की प्रशंसा
उसके सेवक भी नहीं करते।
97: शक्तिशाली राजा लाभ को
प्राप्त करने का प्रयत्न करता है।98: राज्यतंत्र को ही नीतिशास्त्र कहते है।
99: राज्यतंत्र से संबंधित
घरेलु और बाह्य, दोनों कर्तव्यों को राजतंत्र का अंग कहा
जाता है।
100: राज्य नीति का संबंध
केवल अपने राज्य को सम्रद्धि प्रदान करने वाले मामलो से होता है।
101: निर्बल राजा को तत्काल संधि करनी चाहिए।
आचार्य
चाणक्य का जन्म आज से लगभग 2400 साल पूर्व हुआ था। वह नालंदा विशवविधालय
के महान आचार्य थे। उन्होंने हमें ‘चाणक्य नीति’ जैसा ग्रन्थ दिया जो आज भी
उतना ही प्रामाणिक है जितना उस काल में था। चाणक्य नीति एक 17 अध्यायों
का ग्रन्थ है। अपने पाठको के लिए हम यह 17 अध्याय पहले ही अपने ब्लॉग
पर प्रकाशित कर चुके है जो की आप इस लिंक पर पढ़ सकते है – सम्पूर्ण चाणक्य नीति।
आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति के अलावा सैकड़ों ऐसे कथन और कह थे
जिन्हें की हर इंसान को पढ़ना, समझना और अपने जीवन में अपनाना चाहिए। हमने
उनके ऐसे ही 600 कथनों और विचारों का संग्रह यहाँ आप सब के लिए किया है।
आशा है आप सभी पाठकों को आचार्य चाणक्य के कोट्स का यह संग्रह जरूर पसंद
आएगा। - See more at:
http://www.ajabgjab.com/2014/11/600-quotes-of-chanakya-in-hindi.html#sthash.nX1O6uqD.dpuf
आचार्य
चाणक्य का जन्म आज से लगभग 2400 साल पूर्व हुआ था। वह नालंदा विशवविधालय
के महान आचार्य थे। उन्होंने हमें ‘चाणक्य नीति’ जैसा ग्रन्थ दिया जो आज भी
उतना ही प्रामाणिक है जितना उस काल में था। चाणक्य नीति एक 17 अध्यायों
का ग्रन्थ है। अपने पाठको के लिए हम यह 17 अध्याय पहले ही अपने ब्लॉग
पर प्रकाशित कर चुके है जो की आप इस लिंक पर पढ़ सकते है – सम्पूर्ण चाणक्य नीति।
आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति के अलावा सैकड़ों ऐसे कथन और कह थे
जिन्हें की हर इंसान को पढ़ना, समझना और अपने जीवन में अपनाना चाहिए। हमने
उनके ऐसे ही 600 कथनों और विचारों का संग्रह यहाँ आप सब के लिए किया है।
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